Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi – सुभाष चन्द्र बोस पर निबन्ध

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Netaji Subhas Chandra Bose par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे यानी की आपको Subhas Chandra Bose par 1200 words का essay मिलेगा इसलिए ये आर्टिकल पूरा धेयान से पूरा पढ़ना है। आपके लिए हेलफुल साबित होगी।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत के सबसे प्रभावशाली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं उन्होंने देश के आजादी के लिए कठिन से कठिन संघर्ष किया नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने अकेले अंग्रेजी सेना और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थी उस वक्त सभी युवा नेता जी सुभाष चंद्र बोस से बहुत ही प्रभावित थे और आज भी हमारे देश के युवा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना प्रेरणा मानते हैं और उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलते हैं।

Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए खुद की सेना खड़ी कर दी थी जिसका नाम आजाद हिंद फौज था और उस सेना में बहुत से युवा संघर्ष कर रहे थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस इन सारे युवाओं के प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने इन युवाओं को अपने देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरने का प्रेरणा दिया था और उसी के कारण आज हम आजाद हवा में सांस ले पा रहे हैं

Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi – सुभाष चन्द्र बोस पर निबन्ध

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने देश की आजादी के लिए खुद को कुर्बान कर दिया आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु का रहस्य नहीं खुल पाया है। नेता जी हमारे देश के सबसे बड़े और महान स्वतंत्रता सेनानी और युवा नेता के तौर पर माने जाते हैं।

Netaji Subhas Chandra Bose ने देश की सेवा और मानवता की सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म माना और उसे ही अपना कर्म माना उन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी पूरी जीवन लगा दी। उनके पिता कहते थे जब तुमने देश सेवा का व्रत लिया उसी वक्त से तुम महान व्यक्ति की ओर चल पड़े और तुम देश की सेवा करने से विचलित मत होना और अपने कार्य को करते जाना।

उनके पिता ने कहा आज हम सभी लोगों को एक होकर अपने देश के लिए कुछ करना होगा ताकि हम अपने देश को इन अंग्रेजी हुकूमत से बचा पाए। Netaji Subhas Chandra Bose ने संघर्ष के दौरान जय हिंद का नारा दिया और आज भी यह नारा हमारे देश का राष्ट्रीय नारा है जब भी हम जय हिंद का नारा लगाते हैं।

हमारे अंदर की राष्ट्र भावना को हम प्रकट करते हैं उन्होंने अपने संघर्ष के दौरान एक बहुत ही प्रचलित नारा दिया “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी के संग्राम के दौरान युवाओं में सबसे प्रभावशाली नेता थे।

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी (Biography of Netaji Subhash Chandra Bose in Hindi)

23 जनवरी को हमारे देश के इतिहास मैं स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है क्योंकि 23 जनवरी 1897 में ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म हुआ था उनका नाम सुभाष चंद्र बोस नेताजी उनको उनके संघर्ष के दौरान उपाधि दी गई थी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा के कटक जिले में हुआ था।

सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस है वह उस वक्त के मशहूर वकील में से एक थे उनके पिता एक सरकारी वकील थे पर वह निजी प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी अंग्रेज सरकार के द्वारा उनके पिता को राय बहादुर की उपाधि दी गई पर अंग्रेजों के दमनकारी नीति और अंग्रेजों के अत्याचार को देखते हुए सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस ने अपनी उपाधि लौटा दी।

इसी घटना से सुभाष चंद्र बोस के मन में देश के लिए कुछ करने की इच्छा जागी और उन्होंने देश की सेवा में ही अपनी जिंदगी को लगाने का निर्णय लिया। सुभाष चंद्र बोस की माता जी का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस के पिता जी बंगाल महापालिका में और बंगाल विधानसभा में भी कार्य किए।

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Netaji Subhas Chandra Bose ने अपने प्राथमिक शिक्षा कटक के  प्रोटेस्टेंट स्कूल से पूरी की। इसके बाद वे 1909 में रेवेनशा कॉलेजिएट स्कूल में दाखिला लिय। सुभाष चंद्र बोस ने 1915 में इंटरमीडिएट के परीक्षा पास किया उन्होंने अपने आगे की पढ़ाई बीए ऑनर्स से किया बीए ऑनर्स में उन्होंने दर्शनशास्त्र को विषय रखा था।

सुभाष चंद्र बोस अपनी स्कूली समय से ही नेतृत्व कर रहे थे प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक बार किसी विषय को लेकर झगड़ा हुआ और उस वक्त नेता जी ने छात्रों का नेतृत्व को संभाला जिसके कारण प्रेसिडेंसी कॉलेज में 1 साल के लिए नेताजी को निकाल दिया गया और उन्हें 1 साल तक परीक्षा देने से निलंबित कर दिया गया।

सुभाष चंद्र बोस सेना में जाना चाहते थे पर उनकी आंखें खराब होने के कारण बंगाल रेजीमेंट में भर्ती नहीं मिली और उन्होंने हार नहीं मानी उन्होंने फिर से टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के तौर पर प्रवेश मिला।

Netaji Subhas Chandra Bose के पिता जी चाहते थे कि वे एक आईसीएस बने तब सुभाष चंद्र बोस ने अपने पिता से 24 घंटे का समय मांगा कि वह इस पर अंतिम निर्णय ले सके उन्हें यह परीक्षा देनी है या नहीं देनी है। सोचने विचारने के बाद उन्होंने यह निर्णय लिया कि वह परीक्षा देंगे और वे 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड चले गए परीक्षा की तैयारी के लिए।

लंदन के स्कूल में दाखिला लेने का सोचा पर उन्हें लंदन के स्कूल में दाखिला नहीं मिला। पर उन्हें किड्स विलियम हॉल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की अध्ययन के लिए प्रवेश मिल गया और वहीं रह कर उन्हें अपनी परीक्षा की तैयारी भी शुरू की। 1920 में उन्होंने आईपीएस की परीक्षा दी और वे उस परीक्षा में पूरे देश में चौथे स्थान पर आए।

परीक्षा सफल होने के बाद उन्हें अंग्रेजी सरकार के लिए कार्य करना था पर उनके मन में अंग्रेजी सरकार के के लिए कार्य करने की इच्छा नहीं थी वह नहीं चाहते थे कि वह अंग्रेजों के अंदर कार्य करें इसलिए उन्होंने एक त्यागपत्र देने से पहले अपने घर में एक पत्र लिखा और उस पत्र को पढ़ते हुए उनके घर वालों को यह गर्व हुआ कि उनका बेटा देश की सेवा में अपनी जीवन को लगाना चाहता है।

चंद्र बोस उस वक्त कोलकाता के स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चितरंजन दास से बहुत ही प्रभावित थे उन्होंने त्यागपत्र देने के समय एक पत्र देशबंधु चितरंजन दास को भी लिखा था। इसमें उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ कार्य करने की इच्छा जताई। रविंद्र नाथ टैगोर ने सुभाष चंद्र बोस को देश आने की सलाह दी और देश वापस आते ही।

उन्होंने सबसे पहले मुंबई गए और वहां महात्मा गांधी से मुलाकात की। 20 जुलाई 1921 में सुभाष चंद्र बोस पहली बार गांधी जी से मिले और वहां गांधीजी ने उन्हें छात्रों के साथ कार्य करने की सलाह दी। गांधीजी असहयोग आंदोलन अमृत सरकार के खिलाफ चला रहे थे और देशबंधु चितरंजन दास बंगाल में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और इस वक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी देशबंधु चितरंजन दया के साथ असहयोग आंदोलन का सहयोगी बन गया।

कुछ ही समय में नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक युवा नेता बनकर उभरे और जवाहरलाल नेहरू के साथ उन्होंने कांग्रेस के अंतर्गत युवाओं कि इंडिपेंडेंस लीग शुरू की 1927 में साइमन कमीशन भारत आया था कांग्रेस के खिलाफ पुरजोर आंदोलन चलाया और इस आंदोलन का नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस ने किया।

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देश के आजादी के लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा उन्होंने अपने जीवन काल में कुल 11 बार अंग्रेजों के कारावास में रहे सबसे पहले उन्होंने 16 जुलाई 1930 को 6 महीने का कारावास हुआ।

एक बार गोपीनाथ सा जो कोलकाता के क्रांतिकारी थे उन्होंने उस वक्त के कोलकाता के पुलिस अध्यक्ष को मरना चाहते थे पर उन्होंने गलती से एक व्यापारी को मार डाला जिसके कारण उन्हें फांसी की सजा हुई और इसी के कारण सुभाष जी बहुत ही रोए और उन्होंने अंग्रेज सरकार से गुहार लगाई कि उनके शव को वापस किया जाए।

ताकि उनका अंतिम संस्कार कर सके अंग्रेज सरकार ने इस व्यवहार को देखते हुए यह निर्णय लिया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ना सिर्फ एक क्रांतिकारी बल्कि वह युवाओं को प्रेरित भी करते हैं इसी डर से उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को आजीवन कारावास की सजा सुना दी बिना किसी मुकदमा चलाए उन्हें अनिश्चितकाल के लिए मयमार के जेल में बंदी बनाकर भेज दिया गया।

कारावास में रहते हुए 1930 में सुभाष चंद्र बोस ने कोलकाता के महापौर और चुनाव को जीता और वहां के महापुरुष ने गया और मजदूरों के सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया 1932 में सुभाष चंद्र बोस को फिर से अल्मोड़ा के जेल में भेज दिया गया और इस वक्त उनकी तबीयत और बिगड़ गई इसके बाद सुभाष चंद्र बोस ने चिकित्सकों की सलाह मानते हुए अपना इलाज कराने का सोचा।

फिर वहां 3 साल तक रहे उन्होंने इस दौरान अपने कार्य को भी बहुत अच्छे से किया और अपने पास का भी ख्याल बहुत अच्छी तरह से रखा यूरोप में रहते दौरान वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले जो कि उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मदद करने का वचन दिया फिर उन्होंने आयरलैंड के नेता डी वगैरा से मिले जो कि सुभाष चंद्र बोस के एक अच्छे दोस्त भी बन गए।

इसी इलाज के दौरान Netaji Subhas Chandra Bose ने ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह किया उनकी पत्नी का नाम एमिली शेंकल है उनकी मुलाकात उनके दोस्त ने कराई जब वह बीमार थे तब उन्हें अपनी किताब के लिए टाइपिस्ट की जरूरत थी तब उनके मित्र ने उनकी मुलाकात एमिली शेंकल से करवाई।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजी खिलाफ लड़ाई के लिए उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया। और जापान ने भी सुभाष चंद्र बोस खूब मदद की नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 5 जुलाई 1946 को सिंगापुर के टाउन हॉल के सामने से सुप्रीम कमांडर के तौर पर संबोधित करते हुए अपनी सेना को कहा।

अब हम दिल्ली चलकर अपने देश को आज़ाद कराएंगे और वहां दिल्ली चलो का नारा दिया। उन्होंने जापानी सेना के साथ मिलकर British and Commonwealth सेना से बर्मा इंफाल और कोहिमा में एक साथ लड़ाई लड़ी।

21 अक्टूबर 1946 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की सरकार बनाएं और इसको जर्मनी जापान फिलीपाइन कोरिया चीन इटली और आयरलैंड ने मान्यता दी। हमारे जो बनवाना निकोबार द्वीप समूह पर जापान का कब्जा था और उसको अब जापान ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज आजाद हिंद को दे दिया।

1944 में फिर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सेना आजाद हिंद फौज के साथ मिलकर अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और बहुत से देशों को मुक्त भी कराया।

1944 की लड़ाई में सबसे आम लड़ाई कोहिमा का युद्ध यह युद्ध 4 अप्रैल 1944 से लेकर 22 जून 1940 तक चला और इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा।

नेता जी ने हमारे देश के लिए अपने जीवन का सर्वोच्च समय दिया और उन्होंने हमारे देश के आजादी के लिए अपनी जान भी दिया आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर बहुत ही रहस्मय हैं कहा जाता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 एक विमान दुर्घटना में हो गई थी।

आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस शहीद दिवस 18 अगस्त को जापान में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पर उनके परिवार का मानना है कि उनकी मृत्यु उस विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी उन्हें रूस में नजरबंद कर दिया गया था और अभी भी इनकी मृत्यु का रहस्य खुल नहीं पाया है.

और बहुत सी सरकारें आई और कहीं पर हमारे इस महान नेता के अंतिम क्षण मृत्यु का कारण पता नहीं लगा पाई जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी देश के लिए लगा दी पर हम आज तक इनकी मृत्यु का सही कारण पता नहीं लगा पाए हैं।

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तो दोस्तों मुझे उम्मीद है की सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi के बारे में बताया यानी की Netaji Subhas Chandra Bose par Nibandh kaise Likhe इसकी पूरी जानकारी दिया तो अगर आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर।